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रिट एवं उसके प्रकार :




रिट -

उच्चतम न्यायालय (अनु० 32 के तहत ) एवं उच्च न्यायालय ( अनु० 226 के तहत ) रिट जरी कर सकता है | संसद ( अनु० 32 के तहत ) किसी अन्य न्यायालय को भी इन रिटों को जारी करने का अधिकार दे सकती है ,चूँकि अभी तक ऐसी कोई व्यवस्था नही है | केवल उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय ही रिट जारी कर सकते हैं कोई अन्य न्यायालय नहीं | 

रिट के प्रकार -

रिट पांच प्रकार के होते है जो इस प्रकार है -

1.बंदी प्रत्यक्षीकरण -

बंदी प्रत्यक्षीकरण  के द्वारा न्यायालय किसी गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय के सामने प्रस्तुत करने का आदेश देता है | यदि गिरफ्तारी का तरीका या कारण गैरकानूनी या असंतोषजनक हो तो , न्यायालय गिरफ्तार व्यक्ति को छोड़ने का आदेश दे सकता है |


2.परमादेश -

यह आदेश तब जरी किया जाता है जब न्यायालय को लगता है की कोई सार्वजनिक पदाधिकारी अपने कानूनी और संवैधानिक दायित्वों का पालन नहीं कर रहा है इससे किसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहा है |


3.निषेध आदेश -

जब कोई निचली अदालत अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करके किसी मुक़दमे की सुनवाई करती है तो उपर की अदालतें ( उच्च्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय ) उसे ऐसा करने से रोकने के लिए 'निषेध आदेश ' जरी करती है |


4.आधिकार पृच्छा _

जब न्यायालय को लगता है की कोई व्यक्ति ऐसे पद पर नियुक्त हो गया है जिसका उसपर कोई कानूनी हक़ नहीं है तब न्यायालय  'अधिकार पृच्छा आदेश ' के द्वारा उसे उस पद पर कार्य करने से रोक सकता है |


5.उत्प्रेषण रिट -

जब कोई निचली अदालत या सरकारी अधिकारी बिना अधिकार के कोई कार्य करता है,तो न्यायालय उसके समक्ष विचाराधीन मामले को उससे लेकर उत्प्रेषण द्वारा उसे ऊपर की अदालत या अधिकारी को हस्तांतरित कर देता है | 


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