* सिन्धु घाटी सभ्यता
वर्षो पुरानी सिन्धु घटी सभ्यता 20वी सदी के द्वितीय दशक तक एक गुमनाम सभ्यता थी | विद्वानों की धारणा थी की सिकंदर के आक्रामण (326 ई.पू.) के पूर्व भारत में कोई सभ्यता ही नही थी | बीसवी सदी के तृतीय दशक में दो पुरातत्वशास्त्रियों -दयाराम साहनी तथा राखालदास बनर्जी ने हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो के प्राचीन स्थलों से पुरावास्तुं प्राप्त कर सिद्ध क्र दिया की सिकंदर के आक्रमण के पहले भी एक सभ्यता थी,जो अपने समकालीन सभ्यताओं में सबसे विकसित थी |
कालांतर में सर जॉन मार्शल,माधव स्वरुप वत्स,के.एन.दीक्षित,अर्नेस्ट मैके,ऑरेल स्टेइन ,अम्लानंद घोष ,जे.पी.जोशी ,आदि विद्वानों ने उत्खनन करके महत्वपूर्ण सामाग्ररिया प्राप्त की | उत्खनन से प्राप्त अवशेषों के आधार पर इस पूरी सभ्यता को 'सिन्धु घटी सभ्यता 'अथवा इसके मुख्य स्थल हड़प्पा के नाम पर 'हड़प्पा सभ्यता 'कहा जाता है |
- नामकरण
सिन्धु घाटी सभ्यता का क्षेत्र अत्यंत व्यपक था| आरम्भ में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई से इस सभ्यता के प्रमाण मिले हैं अतः विद्वानों ने इसे सिन्धु घटी सभ्यता का नाम दिया , क्योंकि इसके क्षेत्र सिन्धु एवं इसके सहायक नदिय्नो के क्षेत्र में आते हैं , पर बाद में रोपण ,लोथल कालीबंगा,बनावली,रंगपुरी,आदि क्षेत्र में भी इस सभ्यता के अवशेष मिले जो सिन्धु और उसकी सहायक नदिय्नो के क्षेत्र से बाहर थें अतः इतिहासकार इस सभ्यता का प्रामुख केंद्र हड़प्पा होने के कारण इस सभ्यता को 'हड़प्पा की सभ्यता ' नाम देना उचित मानते हैं
1. सिन्धु घाटी सभ्यता का भौगोलिक विस्तार
- सिन्धु घाटी सभ्यता का विस्तार भारत के अलावा पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के कुछ क्षेत्र में भी था|
- सैन्धव सभ्यता का भौगोलिक विस्तार उत्तर में मांडा ( जम्मू ) से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी की मुहाने तक तथा पश्चिम में सुल्कागेंडर से लेकर पूर्व में आलमगीरपुर (मेरठ ) तक था
- वह उत्तर से दक्षिण लगभग 1100किमी.तक तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग 1600किमी.तक फैली हुयी थी | अभी तक उत्खनन तथा अनुसन्धान द्वारा करीब 2800 स्थल ज्ञात किये गये हैं
- सर्वप्रथम चाल्स मैसन ने 1826 ई में सैन्धव सभ्यता का पता लगाया जिसका सर्वप्रथम वर्णन उनके द्वारा 1842 ई में प्रकाशित पुस्तक में मिलता है | उसके बाद वर्ष 1921 में भारतीत पुरातत्व विभाग के तत्कालीन अध्यक्ष सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में पुरातत्विद दयाराम साहनी ने उत्खनन कर इसके प्रामुख नगर' हड़प्पा ' का पता लगाया | सर्वप्रथम हडप्पा स्थल खोज के कारण इसका नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया
- सिन्धु घाटी सभ्यता एक नगर योजना थी , जिसका ज्ञान इसके पुरातात्विक अवशेषों तथा अनुसंधानों से होता है |इसकी सबसे बड़ी विशेषता थी -पर्यावरण के अनुकूल इसका अद्भुत नगर नियोजन तथा जल निकास प्रणाली |
- सड़कों के किनारे की नालियाँ उपर से ढंकी होती थीं | घरों का गन्दा पानी इन्ही नालियों में जाता था
- आमतौर पर प्रत्येक घर में आँगन ,एक रसोईघर तथा एक स्नान घर होता था \ अधिकाँश घरों में कुंवा के अवशेष भी मिले हैं
- हड़प्पा कालीन नगरों के चारो ओर प्राचीर बनाकर किलेबंदी की गयी थी,जिसका उद्देश्य नगर को चोर,लुटेरों एवं से बचाना था
- हड़प्पा वर्तमान रावी नदी के बाएं तट पर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी जिले में स्थित है
- यहाँ के निवासियों का एक बड़ा भाग व्यापार,तकनिकी उत्पाद और धर्म के कार्यों में संलग्न था
- नगर की रक्षा के लिए पश्चिम की ओर एक न्दुर्ग का निर्माण किया गया था यह दुर्ग उत्तर से दक्षिण की ओर 415मीटर लम्बा तथा पूर्व से पश्चिम की ओर 195 मीटर चौड़ा है
- यह सिंध (पाकिस्तान ) के लारकाना जिले में सिन्धु नदी के तट पर स्थित है
- मोहनजोदड़ो की शासन व्यवस्था जनतंत्रात्मक थी
- वृहद् स्नानागार ,मोहनजोदड़ो का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल है इसके केन्द्रीय खुले प्रागंन के बीच जक्ल्कुंद या जलाशय बना है
- तांबे तथा तिन को मिलाकर हडपावासी कांसे का निर्माण करते थें मोहनजोदड़ो से कांसे की एक नर्तकी पाई गयी है
- यह सैन्धव नगर मोहनजोदड़ो से 130किमी. पूर्व सिंध प्रांत ( पाकिस्तान ) में स्थित है इसकी सर्वप्रथम खोज 1934 ई में एन.गोपाल मजमुदार ने की थी तथा 1935 ई में अर्नेस्ट मैके द्वारा यहाँ उत्खनन करवाया गया
- चन्हुदड़ो एक मात्र पुरास्थल है जहा से वर्काकार ईंटे मिले हैं
- चन्हुदड़ो से पुर्व्वोत्तर हड़प्पाकालीन संस्कृति ( झुकर-झांगर ) के अवशेष मिले हैं
- एसा प्रतीत होता है की यह एक ओधोगिक केंद्र था जहा मुहर बनाने,भार-माप के बटखरे बनाने का काम होता था
- यह गुजरात के अहमदाबाद जिले के सरगवाला ग्राम के समीप दक्षिण में भोगवा नदी के तट पर स्थित है इसकी खोज सर्वप्रथम डॉ .एस.आर.राव ने 1955 ई में की थी
- यह स्थल एक प्रामुख बंदरगाह था ,जो पश्चिमी एशिया से व्यापार का प्रामुख स्थल था
- हरियाणा के हिसार जिले में स्थित है
- यहाँ से अन्नागार एवं रक्षाप्रचीर के साक्ष्य मिले हैं
- यह राजस्थान के गंगानगर जिले में घग्घर नदी के बाएं तट पर है , कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ काले रंग की चूड़ियाँ हैं
- इसकी खोज 1951 ई में अम्लानंद घोष ने की थी तथा 1961ई में बी.बी.लाल और बी.के. थापर के निर्देशन में खुदाई की गयी
- यहाँ से जुटे और खेत का साक्ष्य मिले हैं
- कालीबंगा में शवों के अंतिम संस्कार हेतु तीन विधियां -पूर्ण समधिकरण ,आंशिक समाधिकरण ,एवं डाह संकार के प्रामन मिले हैं
- हरियाणा के फतेहाबाद जिले में स्थित इस पुरास्थल की खोज 1973ई में आर .एस.बिष्ट ने की थी
- यहाँ जल निकास प्राणाली का आभाव था
- यहाँ से मिटटी का बना हल मिला है
- आधिक मात्रा में जौ मिला है
- यह गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालुका में स्थित है इसकी खोज 1967 ई जे.पी. जोशी ने की थी | यहाँ से प्राप्त होने वाली सिन्धु लिपि के 10 बड़े चिन्हों से निर्मित शिलालेख महत्वपूर्ण उपलब्धि है
- नगर तीन भागों में विभजित था - दुर्गाभाग ,माध्यम नगर तथा निचला नगर
- धौलावीरा से हड़प्पा सभ्यता का एकमात्र स्टेडियम ( खेल का मैदान ) मिला है |
- हड़प्पाई लिपि में लगभग 64 मूल चिन्ह हैं जो सेलखडी की आयताकार मुहरों,तंबो की गुतिकाओं आदि पर मिलते हैं
- इस लिपि का सबसे पुराना नमूना 1853ई में मिला था और 1923ई में पूरी लिपि प्रकाश में आ गयी थी परन्तु अभी तक इसको पढ़ा नहीं गया है
- इसकी लिपि चित्रात्मक थी जो दायीं से बायीं ओर लिखी जाती थी \ सबसे जादा चित्र 'U' आकार तथा मछली केर प्राप्त हुए हैं