मौर्य साम्राज्य (322 ई.पू.-185 ई.पू.)
मौर्य वंश की जानकारी विभिन्न भागो से मिलती है
1. साहित्यिक साक्ष्य - अर्थशास्त्र ,पुराण,मुद्राराक्षस ,बौध एवं जैन ग्रन्थ आदि
2. विदेशी विवरण -मेगस्थनीज,स्ट्रैबो ,कर्टियस आदि
3.पुरातात्विक साक्ष्य -अशोक के अभिलेख ,जूनागढ़ (गिरनार)अभिलेख,काली पोलिश वाले मृद्भांड ,भवन ,स्तूप एवं गुफा ,मुद्रा ,आहत मुद्रा (पंचमार्क)
1.मौर्य साम्राज्य की स्थापना
- चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में मगध में नन्द वंश के शासक धनानंद का शासन था | साक्ष्यों से पता चलता है की धनानद एक क्रूर और अत्याचारी शासक था
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने नन्द वंश के शासक धनानद को पराजित कर मगध में मौर्य वंश की नीव रखी
2. मौर्य वंश के प्रामुख शासक
चन्द्रगुप्त मौर्य (322 ई.पू.-298 ई.पू. )
- चन्द्रगुप्त मौर्य चाणक्य की सहायता से अंतिम नन्द वंशीय शासक धनानद को पराजित कर 322 ई पू. में मगध की गद्दी पर बैठा |
- चन्द्रगुप्त मौर्य के वंश और जाति के सम्बन्ध में विद्वान एकमत नहीं है|बौध एवं जैन ग्रन्थ के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य क्षत्रिय था | अधिकांश विद्वान इसी मत से सहमत हैं |
- चन्द्रगुप्त का सामराज्य उत्तर-पश्चिम में ईरान (फारस ) से लेकर पूर्व में बंगाल तक,उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में उत्तरी कर्णाटक ( मैसूर ) तक फैला हुआ था |
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने तत्कालीन यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को पराजित किया | संधि हो जाने के पश्चात सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त से 500 हाथी लेने के बदले में अपना कुछ हिस्सा चन्द्रगुप्त मौर्य को सौंपा और अपनी पुत्री हेलेना का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य से कर दी ,
- सेल्यूकस ने अपने राजदूत मेगास्थनीज को चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा | मेगास्थनीज मौर्य दरबार में काफी समय तक रहा | भारत में रहकर उसने जो देखा सुना उसे उसने 'इंडिका ' नामक पुस्तक में लिपिबद्ध किया |
- बंगाल पर चन्द्रगुप्त की विजय के बारे में जानकारी महास्थान अभिलेख से मिलती है | इसकी दक्षिण भारत की विजय की जानकारी तमिल ग्रन्थ "अह्नानूर "एवं 'मुरनानूर" तथा अशोक के अभिलेखों से मिलती है
- रुद्रदामन के गिरनार अभिलेख से ज्ञात होता है की चन्द्रगुप्त ने पश्चिम भारत में सौराष्ट्र तक का परदेश जीतकर अपने प्रत्यक्ष शासन के आधिन्न्कर लिया था
- चन्द्रगुप्त मौर्य जैन म्तानुयायी था | उसने जीवन के अंतिम चरण में जैन धर्म की दीक्षा ली \ श्रवणबेलगोला ( कर्णाटक ) में जाकर 298 ई.पू.में उपवास द्वारा शरीर त्याग दिया |
बिन्दुसार (298 ई.पू.-273ई.पू.)
- चन्द्रगुप्त मौर्य का उतराधिकारी बिन्दुसार हुआम,जो 298 ई.पू. में मगध की राजगद्दी पर बैठा |
- बिन्दुसार 'अमित्रघात ' नाम से भी जाना जाता है,जिसका अर्थ होता है -शत्रु विनाशक |
- बिन्दुसार को वायुपुराण में र भाद्र्सार/मद्र्सार तथा जैन ग्रंथो में 'सिंहसेन' कहा गया है |
- बिन्दुसार के शासनकाल में तक्षशिला में हुए दो विद्रोह का वर्णन मिलता है
- मिस्त्र के शासक टोलेमी द्वितीय फिलादेल्फास ने 'डायनोसीस' नमक राजदूत बिन्दुसार के दरबार में भेजा था |
- 'दिव्यावदान ' से ज्ञात होता है की उसकी राजसभा में आजीवक सम्प्रदाय का एक ज्योतिषी पिन्गलवत्स निवास करता था
- बिन्दुसार के काल में भी चाणक्य प्रधानमंत्री था |
अशोक (273 ई.पू.-232 ई.पू.)
- अशोक बिन्दुसार का पुत्र था
- अशोक का वास्तविक राजभिषेक 269 ई.पू. में हुआ | इससे पहले अशोक उज्जैन का राज्यपाल था
- जैन अनुश्रुति के अनुसार अशोक बिन्दुसार के इच्छा विरुद्ध मगध के शासन पर अधिकार कर लिया था |
- सिंहली अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाइयो की हत्या करके गद्दी पर बैठा
- अशोक को उसके अभिलेखों में सामान्यत 'देव्नापिय पिय्दासी ' (देवों का प्यारा ) उपाधि दी गयी है
- अशोक नाम का उल्लेख मास्की ,गुर्जरा ,नेटटूर तथा उदेगोलम अभिलेख में ही मिलता है
- पुराणों में उसे 'अशोक्वर्धन 'तथा दीप्वंशी में 'करोमोली ' कहा गया है
- कई अभिलेखों से स्पष्ट होता है की उसका साम्राज्य उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत (अफगानिस्तान ) से लेकर दक्षिण में कर्णाटक तथा पश्चिम में काठियावाड़ (गुजरात ) से लेकर पूर्व में बंगाल की कड़ी तक विस्तृत था |
- कल्हण की राज्तारंगिनी से पता चलता है की उसका अधिकार कश्मीर पर भी था
अशोक के उतराधिकारी
- अशोक की मृत्यु 232 ई.पू. के लगभग हुयी | उसके एक लघु स्तम्भ लेख में केवल एक पुत्र तीवर का उल्लेख मिलता है ,जबकि अन्य स्रोत इसके विषय में मौन हैं
- पुराणों में उल्लिखित दशरथ के विषय में पुरातात्विक साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं | उसने आठ वर्षो तक शासन किया
- सभी पुराण बृहद्रथ को ही मौर्य वंश का अंतिम शासक मानते हैं बृहद्रथ के मौत के साथ मौर्य वंश का अंत हो गया |
मौर्य कालीन प्रांत
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने शासन की सुविधा हेतु अपने विशाल साम्राज्य को चार प्रान्तों में विभाजित किया | उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला , दक्षिणापथ की राजधानी सुवर्णगिरि , अवन्ती की राजधानी उज्जयिनी तथा प्राची (मध्य प्रदेश ) की राजधानी पाटलिपुत्र थी |
- प्रान्तों का शासन 'राजवंशीय कुमार ' या 'आर्यपुत्र ' नमक पदाधिकारी द्वरा होता था |
- मौर्य काल में प्रान्तों को चक्र कहा जाता था ,जो मंडलों में विभाजित थे | इन प्रान्तों का शासन सीधे सम्राट द्वारा नियंत्रित न होकर उसके प्रतिनिधि द्वारा संचालित होता था |
- अशोक के समय प्रान्तों की संख्या 4 से बढकर 5 हो गयी | पांचवा प्रांत कलिंग था , जिसकी राजधानी तोसली थी |
सैन्य व्यवस्था
- मौर्य राजाओं की सेना बहुत संगठित था बड़े आकर की थी | चाणक्य ने 'चतुरगबल ' ( पैदल सैनिक,घुड़सवार ,हथी और युद्ध रथ ) को सेना का प्रामुख भाग बताया है |
- मेगास्थनीज की 'इंडिका ' के अनुसार , चन्द्रगुप्त मौर्य के पास 6 लाख पैदल,50 हजार,अश्वारोही,9 हजार हाथी ,तथा 800 रथो से सुसज्जित विराट सेना थी |
न्याय व्यवस्था
- मौर्य काल में मौर्य सम्राट सर्वोच्च तथा अंतिम न्यायलय एवं न्यायाधीश था |
- ग्राम सभा सबसे छोटा नायालय था , जहाँ ग्रामीण तथा ग्राम्वृध अपना निर्णय देते थे | उसके ऊपर मुख्यतः संग्रहण , द्रोंमुख ,स्थानीय तथा जनपद के न्यायलय थे
- अर्धशास्त्र में दो तरह के न्यायालयों की चर्चा की गयी है - धर्मस्त्रिय तथा कंटकशोधन
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